गुरुवार, 10 मार्च 2011

ख़ुशी का अपना रुतबा है : देवमणि पांडेय की ग़ज़ल



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

ख़ुशी का अपना रुतबा है कभी जो कम नहीं होता
मगर दुनिया में ग़म जैसा कोई हमदम नहीं होता

मैं अपनी दास्तां लेकर किसी के पास क्या जाऊँ
कुछ ऐसे ज़ख़्म हैं जिनका कोई मरहम नहीं होता

किसी का मिलना क़िस्मत है बिछड़ जाना मुक़द्दर है
बिछड़ने से कभी चाहत का जज़्बा कम नहीं होता

अगर वो वक़्ते-रुख़सत मुस्कराकर देख लेते तो
हमें उनसे बिछड़ने का ज़रा भी ग़म नहीं होता

कभी इक बूँद आँसू से तड़प उठता है दिल अपना
कभी अश्कों की बारिश से ये काग़ज़ नम नहीं होता

उन्हें मालूम क्या होगा कि लुत्फ़े-ज़िंदगी क्या है
कभी यादों में जिनकी दर्द का मौसम नहीं होता

चित्र : नेशनल कॉलेज बांद्रा, मुम्बई के संगीत समारोह में कवि देवमणि पाण्डेय,
प्रिंसिपल डॉ.मंजुला देसाई और शास्त्रीय गायिका ज्योति गाँधी


आपका
देवमणिपांडेय

सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति,
कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड,
गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, 98210-82126

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