बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

देवमणि पांडेय की ग़ज़ल : बदली निगाहें वक़्त की



देवमणि पांडेय की ग़ज़ल

बदली निगाहें वक़्त की क्या-क्या चला गया 
चेहरे के साथ-साथ ही रुतबा चला गया 

बचपन को साथ ले गईं घर की ज़रूरतें
सारी किताबें छोड़ के बच्चा चला गया 

वो बूढ़ी आँखें आज भी रहती हैं मुंतज़िर
जिनको अकेला छोड़ के बेटा चला गया 

मेरी तलब को जिसने समंदर अता किया
अफ़सोस मेरे दर से वो प्यासा चला गया

अबके कभी वो आया तो आएगा ख़्वाब में
आँखों के सामने से तो कब का चला गया

रिश्ता भी ख़ुद में होता है स्वेटर ही की तरह
उधड़ा जो एक बार, उधड़ता चला गया

अपनी अना को छोड़के कुछ यूँ लगा मुझे

जैसे किसी दरख़्त का साया चला गया

खुला मंच 15 के कलाकार (mumbai 19.12.2015)

सम्पर्क : 98210-82126
https://twitter.com/DevmaniPandey5


 

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